अतिथि –संपादक
डॉ. राजपालराजनीतिक विश्लेषक
संप्रग सरकार :कुँए से खाई की ओर
गुजरे तीन साल में सरकार सामना कई चुनौतियों से हुआ , चुनौतियों के लिहाज़ से अगले दो साल भी सरकार के लिए बेहद मुश्किल भरे ही रहने के आसार हैं ......सरकार राजनीतिक - आर्थिक मोर्चों पर तो बुरी तरह से विफल रही ही है ... रणनीतिक - कूटनीतिक विफलता ने उसकी साख पर सवाल खड़ा कर दिया है....रणनीतिक विफलता ही है कि आम आदमी कमरतोड़ महंगाई झेल रहा है , ऐसे माहौल में दैनिक खर्चे के लिए छब्बीस रुपये काफी होने की रिपोर्ट जारी कर देती है ...कूटनीतिक विफलता तो ऐसी की सदन में बहुमत होने के बावजूद लोकपाल के मुद्दे पर लाये तमाम संशोधन एक के बाद एक धराशायी हो गए तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर तो सरकार को रोल बैक ही करना पड़ा... आतंकवाद निरोधी केंद्र के गठन में केंद्र की अपरिपक्वता ने आतंकवाद के खिलाफ लडाई को और कमज़ोर कर दिया....और तो और इस सरकार के कार्यकाल में अक्षम रणनीति का परिणाम रहा कि दुनिया की सबसे अनुशासित संस्था मानी जाने वाली भारतीय सेना भी विवादों में रही....न तो सरकार तेल के दामों में कमी ला पाई उल्टे डी-कंट्रोल करने की दिशा में सक्रिय दिखाई दे रही है....किसानों की आत्महत्या रोकने में नाकाम रही है ...वही डी ए पी खाद, अन्न भण्डारण जैसे मामलों में सरकार ढीली ही रही है...शिक्षा का अधिकार लागू करना तो सरकार की गले की फांस ही साबित हो रहा है.......इरान से तेल आयत नीति में भी सरकार के फैसले अमेरिकी इच्छा की परछाई तले दबी नज़र आयी...
आगामी चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ,निकट भविष्य की सबसे मुश्किल चुनौती आने वाले वक़्त में सरकार के सामने अपनी मुहर लगे व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन भेजने की होगी...दूसरी चुनौती बाबा-अन्ना के आन्दोलन से निपटने की होगी...तीसरी कार्यकाल पूरा करने की होगी,यह चुनौती ममता बैनर्जी के मध्यावधि सम्बन्धी हालिया बयान के लिहाज़ से सबसे अहम् है..चुनावी मोर्चा भी सरकार के लिए मुश्किल ही रहने के आसार हैं...... सरकार के सामने संकट साख और विश्वसनीयता का है...ज़मीनी राजनीति में कुशल नेतृत्व का है ...राहुल बाबा का तिलिस्म जिस तरह से हवा हुआ है ...वह निश्चय ही सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए चिंता का सबब होगा....बहरहाल सुकून इतना भर है कि अभी तीर पूरी तरह से कमान से छूटा नहीं है ...बाकी बचे दो साल में बेहतर काम काज से भी चुनावी तीर निशाने पर लग सकता है....
(लेखक डीएवी कालेज में राजनीतिक विज्ञान के प्राध्यापक हैं )
डॉ. राजपालराजनीतिक विश्लेषक
संप्रग सरकार :कुँए से खाई की ओर
गुजरे तीन साल में सरकार सामना कई चुनौतियों से हुआ , चुनौतियों के लिहाज़ से अगले दो साल भी सरकार के लिए बेहद मुश्किल भरे ही रहने के आसार हैं ......सरकार राजनीतिक - आर्थिक मोर्चों पर तो बुरी तरह से विफल रही ही है ... रणनीतिक - कूटनीतिक विफलता ने उसकी साख पर सवाल खड़ा कर दिया है....रणनीतिक विफलता ही है कि आम आदमी कमरतोड़ महंगाई झेल रहा है , ऐसे माहौल में दैनिक खर्चे के लिए छब्बीस रुपये काफी होने की रिपोर्ट जारी कर देती है ...कूटनीतिक विफलता तो ऐसी की सदन में बहुमत होने के बावजूद लोकपाल के मुद्दे पर लाये तमाम संशोधन एक के बाद एक धराशायी हो गए तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर तो सरकार को रोल बैक ही करना पड़ा... आतंकवाद निरोधी केंद्र के गठन में केंद्र की अपरिपक्वता ने आतंकवाद के खिलाफ लडाई को और कमज़ोर कर दिया....और तो और इस सरकार के कार्यकाल में अक्षम रणनीति का परिणाम रहा कि दुनिया की सबसे अनुशासित संस्था मानी जाने वाली भारतीय सेना भी विवादों में रही....न तो सरकार तेल के दामों में कमी ला पाई उल्टे डी-कंट्रोल करने की दिशा में सक्रिय दिखाई दे रही है....किसानों की आत्महत्या रोकने में नाकाम रही है ...वही डी ए पी खाद, अन्न भण्डारण जैसे मामलों में सरकार ढीली ही रही है...शिक्षा का अधिकार लागू करना तो सरकार की गले की फांस ही साबित हो रहा है.......इरान से तेल आयत नीति में भी सरकार के फैसले अमेरिकी इच्छा की परछाई तले दबी नज़र आयी...
आगामी चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ,निकट भविष्य की सबसे मुश्किल चुनौती आने वाले वक़्त में सरकार के सामने अपनी मुहर लगे व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन भेजने की होगी...दूसरी चुनौती बाबा-अन्ना के आन्दोलन से निपटने की होगी...तीसरी कार्यकाल पूरा करने की होगी,यह चुनौती ममता बैनर्जी के मध्यावधि सम्बन्धी हालिया बयान के लिहाज़ से सबसे अहम् है..चुनावी मोर्चा भी सरकार के लिए मुश्किल ही रहने के आसार हैं...... सरकार के सामने संकट साख और विश्वसनीयता का है...ज़मीनी राजनीति में कुशल नेतृत्व का है ...राहुल बाबा का तिलिस्म जिस तरह से हवा हुआ है ...वह निश्चय ही सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए चिंता का सबब होगा....बहरहाल सुकून इतना भर है कि अभी तीर पूरी तरह से कमान से छूटा नहीं है ...बाकी बचे दो साल में बेहतर काम काज से भी चुनावी तीर निशाने पर लग सकता है....
(लेखक डीएवी कालेज में राजनीतिक विज्ञान के प्राध्यापक हैं )
No comments:
Post a Comment