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जसबीर मलौर राजनीतिक टिप्पणीकार सार्थक चर्चा का केंद्र बने सदन हाल में आई पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा विधानसभा का प्रदर्शन देश की अन्य राज्य के सदनों के मुकाबले निम्नतम स्तर का है...2000 -10 के दौरान 13 राज्यों के सदन के प्रदर्शन का इस संस्था द्वारा अध्ययन किया गया है ....परिणाम बेहद अफसोसजनक रहे कि हम विकास में तो पिछड़ ही रहे हैं , विकास की चर्चा में भी फिसड्डी ही रहे हैं...इस रिपोर्ट के मुताबिक हम सदन की सार्थकता को जिन कसौटियों पर कसते हैं उन सभी पैमानों पर हमारी विधानसभा विफल रही है....अध्ययन बताता है कि प्रदेश विधानसभा की वर्ष भर में केवल 14 बैठकें ही हुईं ... जबकि पश्चिम बंगाल विधानसभा औसतन 48 कर्नाटक और महाराष्ट्र की 42 और हमारे पडोसी राज्य हिमाचल की 31 बैठकें हुईं....वहीँ लोकसभा की सालाना 72 बैठकें हुईं.... सदन में चर्चा का स्तर कितना गिरा है इसका प्रमाण है कि इस दौरान विधेयक सदन में प्रस्तुत होने के दिन ही पारित भी हो गया...यानि उन विधेयकों पर कोई चर्चा नहीं हुई...वहीँ हिमाचल प्रदेश में मात्र बीस फीसदी बिल के साथ ही ऐसा ट्रीटमेंट हुआ ...72 प्रतिशत बिल दस दिनों में और दो प्रतिशत विधेयक दस दिन के बाद पारित हुए...लोक सभा के आकड़ों की बात करें तो महज 6 फीसदी बिल प्रस्तुति के दिन ही पारित हो गए...जबकि 28 दस दिन और और 66 प्रतिशत दस से ज्यादा दिनों की अवधि में राज्यसभा को भेजे गए....सबसे अफसोसजनक बात है कि 2011 में हरियाणा विधानसभा में पेश बजट में ४५ प्रस्तावों पर गहन बहस की जरूरत थी मगर वह अघोषित बहसबंदी की भेंट चढ़ गया.... जिस देश की संसदीय परम्परा में मधु लिमय, अटल बिहारी वाजपेयी , सुषमा स्वराज सरीखे वक्ता अपना योगदान देते हों वहां बहस के बिना सदन का सत्र चलने लगे तो लोकतंत्र की परंपरा में विश्वास रखने वाले लोगों का चिंतित होना लाज़मी है...सदन की कार्रवाई इतनी शुष्क क्यों होने लगी है इस पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए...सत्ता पक्ष के तानाशाही , निरंकुश रवैये औए विपक्ष के अड़ियल रुख की कीमत आम जनता और लोकतंत्र को चुकानी पड़ रही है...सदन की बैठकों में पैसा पानी की तरह बर्बाद हो रहा है और परिणाम शून्य आ रहा है.... मैंने विधानसभा सदस्य के रूप में सदैव जनहित के मुद्दों पर व्यापक चर्चा के प्रयास किये मगर व्यर्थ के मुद्दों की और भटकाव से हमेशा बाधा बनी रही...हमारे माननीयों को समझना होगा कि लोग हमें कुछ अपेक्षाओं के साथ चुन कर भेजते हैं ...हमारा उनके प्रति और सदन के प्रति जो कर्तव्य है उसका श्रद्धापूर्वक वहन नितांत अनिवार्य है...उन्हें समझना होगा कि सदन हंगामे और जोर आजमाईश का नहीं बल्कि सार्थक चर्चाओं का केंद्र है ...इसकी गरिमा तभी तक है जब तक यह जनहित के पुनीत यज्ञ में अपनी आहुति देता रहेगा ....अन्यथा न सदन गरिमामयी रह पायेगी और न ही सदन की गरिमा से खिलवाड़ करने वाले हमारे माननीय ....दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के विधायकों को सदन को सार्थक चर्चा के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि भविष्य में कभी ऐसे कलंक हमारे माथे पर न लगे ... (लेखक 2000-05 के दौरान हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे हैं )
अंतर्व्यूह बुलंद व्यक्तित्व , सरल स्वभाव यही खूबी है युवा इनेलो के जिलाध्यक्ष संदीप राणा की , जिन्होंने अम्बाला समाचार के प्रबंध सम्पादक तरनजीत सासन से अपनी राजनीतिक पारी पर चर्चा की...प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश... संदीप जी, राजनीति से आपका जुड़ाव कैसे हुआ ? जी , समाज को नेतृत्व देने की लालसा मुझमें बचपन से थी जो पहली बार सन १९९६ में सार्वजानिक हुई जब मैंने डीएवी कालेज में इंटर में क्लास रि प्र ेजेंटेटिव का चुनाव लड़ा और प्रचंड समर्थन हासिल किया...उसके बाद मेरी राजनीतिक पारी में नित नया स्कोर जुड़ता चला गया....फिर मैं अगले ही साल सर्वसम्मति से अनौपचारिक रूप से डीएवी कालेज छात्र संघ का अध्यक्ष बना....इसी सिलिसले में २००० में मुझे इनेलो युवा मोर्चा का जिला उपाध्यक्ष बनाया गया....इस बीच मैं चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी का विश्वास पात्र बन गया...जिसके फलस्वरूप मुझे युवा इनेलो के प्रदेश संयुक्त सचिव का पदभार सौंपा गया...जिसके बाद मैं प्रदेश कार्यकारिणी में महासचिव रहा व अब युवा इनेलो का जिलाध्यक्ष हूँ... मौजूदा हालात में आप अपने संगठन की स्थानीय राजनीति में क्या भूमिका देखते हैं? देखिये , इस समय देश-प्रदेश व स्थानीय स्तर पर उपयुक्त युवा नेतृत्व का अभाव है...समाज को इस समय राहुल गाँधी जैसे अखबारी नेताओं के बजाय भाई अजय चौटाला और भाई अभय चौटाला जैसे जमीनी ,आम लोगों से कन्धा मिलकर राजनीति करने वाले लोगों की जरूरत है....युवा इनलो को खड़ा करने का मूल लक्ष्य स्थानीय स्तर पर ऐसे ही युवा नेतृत्व को देना है,,,,मैं यहाँ नाम नहीं लेना चाहूँगा पर अम्बाला में अब तक सबसे युवा उम्मीदवार को विधानसभा में मौका देने का कीर्तिमान इनेलो के ही नाम है.... माना जाये आगामी विधानसभा चुनाव में इनेलो किसी युवा को टिकट थमा सकती है, संभवतः आपको ? (हँसते हुए) जहाँ तक प्रश्न किसी युवा को अवसर देने का है तो क्यों नहीं ? हमारी पार्टी हर उपयुक्त दावेदार को जाँच परख कर टिकट देती है .यदि कोई युवा स्वयं को योग्य उम्मीदवार साबित कर सकता है तो उसे टिकट मिल सकती है...मेरी दावेदारी पर मैं साफ़ कर देना चाहूँगा कि हमारी पार्टी में निजी महत्वाकांक्षाओं को महत्व देने की परंपरा नहीं है....हम पार्टी व समाज की सेवा को अपना परम लक्ष्य मानते हैं...पार्टी को जहाँ ,जिस मोर्चे पर हमारी जरूरत होगी हम अपनी सेवाएं देंगे ,किसी राजनीतिक पद को लेकर न मेरी दावेदारी कभी रही , न है , न होगी..... देखने में आ रहा है कि आप सदस्यता को लेकर बड़ा आक्रामक अभियान चला रहे हैं... (मजाकिया लहजे में) सुनने में आ रहा है हमारे सदस्यता अभियान की सफलता को लेकर हमारे विरोधी सकते हैं...उनका दिन अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से यह जाने -परखने में ही चला जाता है कि वे उनकी पार्टी में बने हुए हैं या नहीं..... लोगों का विश्वास ताऊ देवी लाल व चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के कुशल नेतृत्व व भाई अजय -अभय चौटाला के युवा नेतृत्व में है ,यही कारण है कि हमें न तो विरोधी दलों की तरह समाचार की सुर्खियाँ बनने का स्वांग रचना पड़ा न ही कोई हवाई रणनीति बनानी पड़ी ...पार्टी की ठोस नीतियों के चलते आम लोग और युवा हमारी ओर खींचे चले आ रहे हैं.... युवाओं को आपका सन्देश? एक ऐसी सरकार जिसके रहते में युवाओं का कोई भविष्य न हो ,बेरोजगारी उनकी नियति बन गयी हो उसके ताबूत में हर युवा आखिरी कील ठोंकेने की कोशिश में जुट जाए और इनेलो का हरा भरा राज लाने में अपना गिलहरी योगदान दे ,यही अपील करना चाहूंगा....अम्बाला समाचार इनेलो की तरह युवाओं व हरवर्ग की पहली पसंद बन जाए यही कामना करता हूँ...
जसबीर मलौर
ReplyDeleteराजनीतिक टिप्पणीकार
सार्थक चर्चा का केंद्र बने सदन
हाल में आई पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा विधानसभा का प्रदर्शन देश की अन्य राज्य के सदनों के मुकाबले निम्नतम स्तर का है...2000 -10 के दौरान 13 राज्यों
के सदन के प्रदर्शन का इस संस्था द्वारा अध्ययन किया गया है ....परिणाम बेहद अफसोसजनक रहे कि हम विकास में तो पिछड़ ही रहे हैं , विकास की चर्चा में भी फिसड्डी ही रहे हैं...इस रिपोर्ट के मुताबिक हम सदन की सार्थकता को जिन कसौटियों पर कसते हैं उन सभी पैमानों पर हमारी विधानसभा विफल रही है....अध्ययन बताता है कि प्रदेश विधानसभा की वर्ष भर में केवल 14 बैठकें ही हुईं ... जबकि पश्चिम बंगाल विधानसभा औसतन 48 कर्नाटक और महाराष्ट्र की 42 और हमारे पडोसी राज्य हिमाचल की 31 बैठकें हुईं....वहीँ लोकसभा की सालाना 72 बैठकें हुईं....
सदन में चर्चा का स्तर कितना गिरा है इसका प्रमाण है कि इस दौरान विधेयक सदन में प्रस्तुत होने के दिन ही पारित भी हो गया...यानि उन विधेयकों पर कोई चर्चा नहीं हुई...वहीँ हिमाचल प्रदेश में मात्र बीस फीसदी बिल के साथ ही ऐसा ट्रीटमेंट हुआ ...72 प्रतिशत बिल दस दिनों में और दो प्रतिशत विधेयक दस दिन के बाद पारित हुए...लोक सभा के आकड़ों की बात करें तो महज 6 फीसदी बिल प्रस्तुति के दिन ही पारित हो गए...जबकि 28 दस दिन और और 66 प्रतिशत दस से ज्यादा दिनों की अवधि में राज्यसभा को भेजे गए....सबसे अफसोसजनक बात है कि 2011 में हरियाणा विधानसभा में पेश बजट में ४५ प्रस्तावों पर गहन बहस की जरूरत थी मगर वह अघोषित बहसबंदी की भेंट चढ़ गया.... जिस देश की संसदीय परम्परा में मधु लिमय, अटल बिहारी वाजपेयी , सुषमा स्वराज सरीखे वक्ता अपना योगदान देते हों वहां बहस के बिना सदन का सत्र चलने लगे तो लोकतंत्र की परंपरा में विश्वास रखने वाले लोगों का चिंतित होना लाज़मी है...सदन की कार्रवाई इतनी शुष्क क्यों होने लगी है इस पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए...सत्ता पक्ष के तानाशाही , निरंकुश रवैये औए विपक्ष के अड़ियल रुख की कीमत आम जनता और लोकतंत्र को चुकानी पड़ रही है...सदन की बैठकों में पैसा पानी की तरह बर्बाद हो रहा है और परिणाम शून्य आ रहा है.... मैंने विधानसभा सदस्य के रूप में सदैव जनहित के मुद्दों पर व्यापक चर्चा के प्रयास किये मगर व्यर्थ के मुद्दों की और भटकाव से हमेशा बाधा बनी रही...हमारे माननीयों को समझना होगा कि लोग हमें कुछ अपेक्षाओं के साथ चुन कर भेजते हैं ...हमारा उनके प्रति और सदन के प्रति जो कर्तव्य है उसका श्रद्धापूर्वक वहन नितांत अनिवार्य है...उन्हें समझना होगा कि सदन हंगामे और जोर आजमाईश का नहीं बल्कि सार्थक चर्चाओं का केंद्र है ...इसकी गरिमा तभी तक है जब तक यह जनहित के पुनीत यज्ञ में अपनी आहुति देता रहेगा ....अन्यथा न सदन गरिमामयी रह पायेगी और न ही सदन की गरिमा से खिलवाड़ करने वाले हमारे माननीय ....दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के विधायकों को सदन को सार्थक चर्चा के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि भविष्य में कभी ऐसे कलंक हमारे माथे पर न लगे ...
(लेखक 2000-05 के दौरान हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे हैं )
अंतर्व्यूह
ReplyDeleteबुलंद व्यक्तित्व , सरल स्वभाव यही खूबी है युवा इनेलो के जिलाध्यक्ष संदीप राणा की , जिन्होंने अम्बाला समाचार के प्रबंध सम्पादक तरनजीत सासन से अपनी राजनीतिक पारी पर चर्चा की...प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश...
संदीप जी, राजनीति से आपका जुड़ाव कैसे हुआ ?
जी , समाज को नेतृत्व देने की लालसा मुझमें बचपन से थी जो पहली बार सन १९९६ में सार्वजानिक हुई जब मैंने डीएवी कालेज में इंटर में क्लास रि
प्र
ेजेंटेटिव का चुनाव लड़ा और प्रचंड समर्थन हासिल किया...उसके बाद मेरी राजनीतिक पारी में नित नया स्कोर जुड़ता चला गया....फिर मैं अगले ही साल सर्वसम्मति से अनौपचारिक रूप से डीएवी कालेज छात्र संघ का अध्यक्ष बना....इसी सिलिसले में २००० में मुझे इनेलो युवा मोर्चा का जिला उपाध्यक्ष बनाया गया....इस बीच मैं चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी का विश्वास पात्र बन गया...जिसके फलस्वरूप मुझे युवा इनेलो के प्रदेश संयुक्त सचिव का पदभार सौंपा गया...जिसके बाद मैं प्रदेश कार्यकारिणी में महासचिव रहा व अब युवा इनेलो का जिलाध्यक्ष हूँ...
मौजूदा हालात में आप अपने संगठन की स्थानीय राजनीति में क्या भूमिका देखते हैं?
देखिये , इस समय देश-प्रदेश व स्थानीय स्तर पर उपयुक्त युवा नेतृत्व का अभाव है...समाज को इस समय राहुल गाँधी जैसे अखबारी नेताओं के बजाय भाई अजय चौटाला और भाई अभय चौटाला जैसे जमीनी ,आम लोगों से कन्धा मिलकर राजनीति करने वाले लोगों की जरूरत है....युवा इनलो को खड़ा करने का मूल लक्ष्य स्थानीय स्तर पर ऐसे ही युवा नेतृत्व को देना है,,,,मैं यहाँ नाम नहीं लेना चाहूँगा पर अम्बाला में अब तक सबसे युवा उम्मीदवार को विधानसभा में मौका देने का कीर्तिमान इनेलो के ही नाम है....
माना जाये आगामी विधानसभा चुनाव में इनेलो किसी युवा को टिकट थमा सकती है, संभवतः आपको ?
(हँसते हुए) जहाँ तक प्रश्न किसी युवा को अवसर देने का है तो क्यों नहीं ? हमारी पार्टी हर उपयुक्त दावेदार को जाँच परख कर टिकट देती है .यदि कोई युवा स्वयं को योग्य उम्मीदवार साबित कर सकता है तो उसे टिकट मिल सकती है...मेरी दावेदारी पर मैं साफ़ कर देना चाहूँगा कि हमारी पार्टी में निजी महत्वाकांक्षाओं को महत्व देने की परंपरा नहीं है....हम पार्टी व समाज की सेवा को अपना परम लक्ष्य मानते हैं...पार्टी को जहाँ ,जिस मोर्चे पर हमारी जरूरत होगी हम अपनी सेवाएं देंगे ,किसी राजनीतिक पद को लेकर न मेरी दावेदारी कभी रही , न है , न होगी.....
देखने में आ रहा है कि आप सदस्यता को लेकर बड़ा आक्रामक अभियान चला रहे हैं...
(मजाकिया लहजे में) सुनने में आ रहा है हमारे सदस्यता अभियान की सफलता को लेकर हमारे विरोधी सकते हैं...उनका दिन अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से यह जाने -परखने में ही चला जाता है कि वे उनकी पार्टी में बने हुए हैं या नहीं..... लोगों का विश्वास ताऊ देवी लाल व चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के कुशल नेतृत्व व भाई अजय -अभय चौटाला के युवा नेतृत्व में है ,यही कारण है कि हमें न तो विरोधी दलों की तरह समाचार की सुर्खियाँ बनने का स्वांग रचना पड़ा न ही कोई हवाई रणनीति बनानी पड़ी ...पार्टी की ठोस नीतियों के चलते आम लोग और युवा हमारी ओर खींचे चले आ रहे हैं....
युवाओं को आपका सन्देश?
एक ऐसी सरकार जिसके रहते में युवाओं का कोई भविष्य न हो ,बेरोजगारी उनकी नियति बन गयी हो उसके ताबूत में हर युवा आखिरी कील ठोंकेने की कोशिश में जुट जाए और इनेलो का हरा भरा राज लाने में अपना गिलहरी योगदान दे ,यही अपील करना चाहूंगा....अम्बाला समाचार इनेलो की तरह युवाओं व हरवर्ग की पहली पसंद बन जाए यही कामना करता हूँ...