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Saturday, 20 August 2011

पाठक-पीठ

वादों की लड़ी और बरसात की झडी......
 

एक बार फिर बरसात ने प्रशासन की पोल खोल दी....वैसे  बरसात का मजा लेने वाले भी कम नहीं हैं लेकिन बरसात  का  डर क्या होता है बलदेव नगर के लोगों से जानिए... वो डर हर साल की तरह इस बार भी था...बीच में खबर आई की मानसून कमजोर पडा लेकिन शायद मानसून एक बार फिर प्रशासन को गलत साबित करना चाहता था उसके वादों की हवा निकालना चाहता था...लेकिन प्रशासन और बरसात की इस नोंक झोंक में बेचारी जनता का हाल बेहाल है...प्रशासन हर बार वादों के पुल बनाता है और बरसात हर बार उस पुल को तिनके की तरह बहा ले जाती है.....बरसात के साथ टांगरी के साझेदारी हाल और बेहाल कर जाती है...इस बार फिर अंबाला के लोग वादों की लडी तो देख चुके हैं लेकिन बरसात की झडी अभी बाकी है...पिछले साल की तरह अगर इस बार भी बाढ आई तो वादों के साथ कई लोगो के अरमान और सपने भी बह जाएंगे....प्रशासन बीरबल की खिचडी वाले अपने वादे कब तक पकाता रहेगा...इस बार तो बेचारे लोगो की बेचारगी अभी तक टीवी चैनलों पर नहीं दिखी है... क्योंकि सब जगह अन्ना ही छाए हुए हैं...वैसे अन्ना का संघर्ष भी जरुरी है और अंबाला भी उनके साथ है...इस बार प्रशासन अन्ना का जरुर शुक्रगुजार होगा क्योंकि बरसात की झडी में हर बार खबरिया चैनलों पर लगने वाली उसकी क्लास इस बार अभी तक नहीं लगी....लेकिन क्यों वक्त रहते तैयारियां नहीं की जाती...क्यों सांप निकलने के बाद लकीर पीटी जाती है....ये वैसे तो यक्ष प्रश्न हैं देखते हैं इसका जवाब देने कोई धर्मराज युधिष्ठिर आता है या नहीं... 


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