सन्देश स्पष्ट है अपनी मांगों को लेकर न हिंसक हुआ जाए...न आंदोलित ...न उत्पाती ...बड़े शांतचित्त से गांधीवादी तरीके इस सबसे निपटा जाये....
स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने वाले अम्बाला ने अन्ना द्वारा आहूत आन्दोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है....नगरवासी आन्दोलन के समर्थन में सड़क पर उतर आये वहीँ उनके जेल जाते ही आंदोलित नगरवासियों ने पूर्ण उर्जा से अपना विरोध भी जता दिया....अन्ना के माध्यम से जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति हुई जो भ्रष्टाचार के गर्त में आकंठ डूबे बाबुओं की मनमानी प्रतिदिन सहती है....इस आन्दोलन ने गांधीवादी परंपरा को समृद्ध किया...निस्संदेह आन्दोलन से अपनी समस्याओं को हल करवाने का एक नया रास्ता मिला है....अन्ना का यह आह्वाहन कि राष्ट्रीय संपत्ति को किसी भी प्रकार कि हानि न हो.....नगर में प्रायः अपनी समस्याओं को लेकर तोड़-फोड़ , उत्पात मचाने वालों को इससे सीख लेने की आवश्यकता है.... ....आत्मविश्लेषण का समय है यह ....यह विचारने का कि हम विध्वंस किया बिना ही रचनात्मक समाधान क्यों तलाशने हेतू क्यों प्रयासरत नहीं होते....यदि कोई अधिकारी कामकाज में आनाकानी अथवा कोई अनुचित मांग करता है तो क्यों न उसके विरुद्ध संगठित हो उसका अन्नान्दोलन ढंग से सामना किया जाए....क्यों गांधीवादी तरीके से उसके घर पहुंचकर उसे भेंट दी जाए...क्यों न उस अधिकारी के कार्यालय के बाहर उसे अर्थाभाव कि पूर्ति हेतू दानपात्र रख दिया जाए..... क्यों न सड़क न बनाये जाने पर अधिकारी के घर के बाहर धरना दिया जाए....स्वच्छ जलापूर्ति न होने पर वह जल उस अधिकारी को भेंट कर दिया जाए....सन्देश स्पष्ट है अपनी मांगों को लेकर न हिंसक हुआ जाए...न आंदोलित ...न उत्पाती ...बड़े शांतचित्त से गांधीवादी तरीके इस सबसे निपटा जाये....
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